परामर्शदाता: सेवा, संतुष्टि और बेहतर रोजगार
काउंसलर, परामर्शदाता या सलाहकार शब्द सुनते ही सबसे पहले दिमाग में यह आता है कि कोई व्यक्ति है जो उनकी बात को सुनेगा, समझेगा और उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करेगा। परामर्शदाता एक प्रशिक्षित पेशेवर होता है जो परामर्श के लिए आए व्यक्ति से साथ मिलकर किसी समस्या के समाधान को खोजने में उनकी मदद करता है, उन्हें उचित निर्णय लेने के लिए सशक्त करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रति एक लाख आबादी पर कम से कम तीन मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाता होने चाहिए। अगर भारत की बात करें तो आबादी के अनुसार हमें कम से कम चार लाख परामर्शदाताओं की आवश्यकता होगी। यह आंकड़ा केवल मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाताओं के लिए है, जबकि हमें शिक्षा, रोजगार, परिवारिक और अन्य क्षेत्रों में भी इतनी ही संख्या में परामर्शदाताओं की आवश्यकता है।
भारत में परामर्शदाताओं की आवश्यकता बड़ने के बहुत से कारण हैं जिनमे मुख्य है
1. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं: पूरे विश्व की तरह भारत में भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि अवसाद, चिंता, तनाव आदि बढ़ रही हैं।
2. जागरूकता की कमी: मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी है, जिससे लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद लेने में हिचकिचाहट होती है।
3. सामाजिक दबाव: भारतीय समाज में सामाजिक दबाव और अपेक्षाएं बहुत अधिक होती हैं, जिससे लोगों पर मानसिक दबाव बढ़ता है।
4. शिक्षा और करियर का दबाव: छात्रों और पेशेवरों पर शिक्षा और करियर का दबाव बहुत अधिक होता है, जिससे उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
5. परिवारिक समस्याएं: परिवारिक समस्याएं जैसे कि वैवाहिक समस्याएं, पारिवारिक तनाव आदि भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं।
6. आर्थिक समस्याएं: आर्थिक समस्याएं जैसे कि बेरोजगारी, आर्थिक तनाव आदि भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं।
इन सभी कारणों से भारत में काउंसलर्स की आवश्यकता बड़ी है ताकि लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद मिल सके।
एक परामर्शदाता स्वास्थ्य, शिक्षा, सामुदायिक विकास के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ ही व्यक्तिगत समस्याओं का हल तलाशने में भी लोगो की मदद करता है। विभिन्न क्षेत्रों में परामर्शदाताओं की उपयोगिता है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में:
1. मानसिक स्वास्थ्य परामर्श: मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि अवसाद, चिंता, तनाव आदि के लिए काउंसलिंग प्रदान करना।
2. स्वास्थ्य शिक्षा: लोगों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करना और उन्हें स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
3. बीमारी प्रबंधन: बीमारी के प्रबंधन में मदद करना और मरीजों को अपनी बीमारी के बारे में जानकारी प्रदान करना।
यह भी पढ़ें
शिक्षा क्षेत्र में:
1. कैरियर/रोजगार: छात्रों को उनके कैरियर में सही निर्णय लेने में मदद करना।
2. शैक्षिक परामर्श: छात्रों को उनकी शैक्षिक समस्याओं का समाधान करने में मदद करना।
3. व्यक्तिगत परामर्श: छात्रों को उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करने में मदद करना।
सामाजिक क्षेत्र में:
1. परिवारिक परामर्श: परिवारों को उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करना।
2. समुदाय परामर्श: समुदायों को उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करना।
3. व्यक्तिगत परामर्श: व्यक्तियों को उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करना।
इन क्षेत्रों में परामर्शदाता लोगों को उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद कर सकते हैं और उन्हें सुखी और स्वस्थ जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।
भारत में परामर्श या मार्गदर्शन का इतिहास बहुत पुराना है, और यह विभिन्न रूपों में विकसित हुआ है। प्राचीन काल की गुरुकुल व्यवस्था में भारत में शिक्षक छात्रों को जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन प्रदान करते थे। मध्यकाल में भारत में सूफी और भक्ति आंदोलनों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, जहां गुरु और शिष्य के बीच मार्गदर्शन और समर्थन का महत्व था। वर्तमान समय में भी भारत में परामर्श की परंपरा और विकसित हो रही है, और यह शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, और निजी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में कई कदम उठाए हैं जिससे परामर्शदाताओं की मांग बढ़ रही है।
भारत में परामर्शदाताओं का भविष्य रोजगार के दृष्टिकोण से बहुत उज्ज्वल है, क्योंकि देश में मानसिक स्वास्थ्य की जागरूकता बढ़ रही है। शिक्षा क्षेत्र में बहुत तेजी से विकास हो रहा है। करियर और रोजगार परामर्श की मांग बढ़ रही है, क्योंकि छात्रों को अपने करियर में सही निर्णय लेने में मदद की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र में परामर्शदाताओं के लिए कई अवसर हैं, जैसे कि निजी स्कूल, कॉलेज और कंपनियों में परामर्शदाताओं की आवश्यकता है।
सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में परामर्शदाताओं की आवश्यकता और उपयोगिता को देखते हुए कई पहल की हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में परामर्शदाताओं की मौजूदगी दिखाई देने लगी है। लेकिन अभी और व्यापक स्तर पर इनकी जरूरत है। दशकों से चली आ रही मौजूदा शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में परामर्शदाताओं को सम्मानजनक स्थान दिये जाने की आवश्यकता है। कई मुख्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में वर्षो से परामर्शदाता मुख्य भूमिका में हैं। ऐसे अनुभवी और प्रशिक्षित परामर्शदाताओं को प्रशिक्षण देकर उनका अन्य क्षेत्रों में भी सदुपयोग करना चाहिए, ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सकें और लोगों को बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकें। परामर्शदाताओं को सामाजिक क्षेत्र में भी शामिल करना चाहिए ताकि वे समुदायों को उनकी समस्याओं का समाधान करने में मदद कर सकें।
एक स्वस्थ, शिक्षित और सशक्त नागरिक ही स्वस्थ समाज और मजबूत राष्ट्र का विकास कर सकता है जिसमे परामर्शदाता लोगो के मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और व्यक्तिगत जीवन में सकारात्मक बदलाव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
अश्वनी राघव
परामर्शदाता, दिल्ली राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी
दिल्ली सरकार ।
(यह लेखक के अपने विचार हैं इसके लिए हमारी संस्था जिम्मेदार नहीं है)